Thursday, February 19, 2009
असत का सदुपयोग और सत् का साक्षात्कार
सत्-ता, चेतन-ता, और आनंद-ता, जीवात्मा और परमात्मा को मिलाता है; और असत-ता, जड़-ता, और दुःख-रुप-ता शरीर और संसार को मिलाती है; तो शरीर संसार का हिस्सा है और जीवात्मा परमात्मा का अंग है….. अंग अंग ही से जुदा रहना चाहता है, मिटटी का धेला पृथ्वी का अंग है, ज़ोर से फेंको, फिर भी पृथ्वी पर आएगा.. अग्नी सुर्य का अंग है, दियासलाई जलाओ, सीदी करो तो भी उसकी लौ ऊपर, और उलटी कर दो,तो भी उसकी लौ ऊपर… ऐसे ही जीवात्मा सत्, चित और आनंद का अंग है, इसलिये वोह सदा रहना चाहता है, सब कुछ जानना चाहता है, और आनंद चाहता है;लेकिन असत, जड़ और दुःख रुप से आनंद चाहता है, इसलिये मार खाता है और फिर सब छोड़ के मर जाता है… अगर, सत्संग मिल जाये,थोडा साधन मिल जाये, गुरू-मंत्र मिल जाये, थोडा ध्यान की रित मिल जाये, तो (गुरुदेव चुटकी बजाते है ) असत का सदुपयोग और सत् का साक्षात्कार. ..दोनो हाथ में लड्डू…!!:)
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