Harshal

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Sunday, January 23, 2011

श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण बालकों के साथ पूरे बालक, युवाओं के साथ पूरे युवक, गोपियों के बीच
पूरे प्रेमस्वरूप, योगियों के बीच महायोगी, राजाओं के बीच महाराजा,
राजनीतिज्ञों के बीच पूरे राजनीतिज्ञ, शत्रुओं के बीच काल के समान और मित्रों
के बीच पूर्ण प्रेमस्वरूप, आनन्दस्वरूप हैं। वे अर्जुन के लिए वत्सल सखा है तो
वसुदेव-देवकी के लिए आनन्दकारी हितकारी पुत्र हैं। श्रीकृष्ण गुरूओं के समक्ष
पूरे शिष्य और शिष्यों के लिए पूरे गुरू हैं ऐसे श्रीकृष्ण को वन्दन......

*कृष्णं वन्दे जगद् गुरूम्।*

कंस को मारकर जब श्रीकृष्ण वसुदेव के पास गये तब वसुदेवजी ने कहाः "मैंने
तुम्हारे लिये हनुमानजी की मनौती मानी थी।"

श्रीकृष्ण बोलते हैं- "हाँ..... जब मैं मल्लयुद्ध कर रहा था तब एक बड़ी-बड़ी
पूँछवाला कोई पुरूष मुझे मदद कर रहा था.... क्या वे हनुमानजी थे ?"

वसुदेव जी कहते हैं- "हाँ, हाँ, बेटा ! वे हनुमान जी ही होंगे। उन्होंने ही
तुम्हारी रक्षा की।"

वसुदेव जी बेटा मानते हैं तो श्रीकृष्ण भी उनके साथ पुत्रवत् व्यवहार ही करते
हैं। रानियों के लिये, पत्नियों के लिये जो पूरे पति हैं और पुत्रों के लिए जो
पूरे पिता हैं अर्थात् जहाँ भी देखो, जिसके साथ भी देखो, वे सच्चिदानंदघन
आनंदकंद श्रीकृष्ण पूरे के पूरे हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण को

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